श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्माणास्त्रिविध: स्मृत: ।
व्याख्या- ‘ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः’- ऊँ, तत् और सत्- यह तीन प्रकार का परमात्मा का निर्देश है अर्थात परमात्मा के तीन नाम हैं (इन तीनों नामों की व्याख्या भगवान ने आगे के चार श्लोकों में की है)। ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा- उस परमात्मा ने पहले (सृष्टि के आरंभ में) वेदों, ब्राह्मणों और यज्ञों को बनाया। इन तीनों में विधि बताने वाले वेद हैं, अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण हैं और क्रिया करने के लिए यज्ञ हैं। अब इनमें यज्ञ, तप, दान आदि की क्रियाओं में कोई कमी रह जाए, तो क्या करें? परमात्मा का नाम लें तो उस कमी की पूर्ति हो जाएगी। जैसे रसोई बनाने वाला जल से आटा सानता (गूँधता) है, तो कभी उसमें जल अधिक पड़ जाए, तो वह क्या करता है? आटा और मिला लेता है। ऐसे ही कोई निष्कामभाव से यज्ञ, दान आदि शुभकर्म करे और उनमें कोई कमी- अंग वैगुण्य रह जाए, तो जिस भगवान से यज्ञ आदि रचे गए हैं, उस भगवान का नाम लेने से वह अंग वैगुण्य ठीक हो जाता है, उसकी पूर्ति हो जाती है।
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