श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्थ अध्याय तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिये कर्मयोग और सांख्ययोग का वर्णन होने से इस चौथे अध्याय का नाम ‘ज्ञानकर्मसंन्यास योग’ है। 1. इस अध्याय में ‘अथ चतुर्थोऽध्यायः’ के तीन, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के छः, श्लोकों के पाँच सौ ग्यारह और पुष्पिका के तरह पद हैं। इस प्रकार संपूर्ण पदों का योग पाँच सौ तैंतीस है। 2. इस अध्याय में ‘अथ चतुर्थोऽध्यायः’ के सात, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के बीस, श्लोकों के एक हजार तीन सौ चौवालीस और पुष्पिका के पचास अक्षर हैं। इस प्रकार संपूर्ण अक्षरों का योग एक हजार चार सौ इक्कीस है। इस अध्याय के सभी श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं। 3. इस अध्याय में तीन उवाच हैं- दो ‘श्रीभगवानुवाच’ और ‘अर्जुन उवाच’। इस अध्याय के बयालीसवें श्लोकों में से- इकतीसव और अड़तीसवें श्लोक के प्रथम चरण में तथा दूसरे, दसवें, तेरहवें और चालीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; और चौबीसवें श्लोक के प्रथम चरण में तथा तीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष तैंतीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छंद के लक्षणों से युक्त हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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