श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
नवम अध्याय
तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे राज विद्याराज गुह्य योगो नाम नवमोऽध्यायः ।।9।। अर्थ- इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘राज विद्याराज गुह्य योग’ नामक नवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।। इस अध्याय में भगवान ने जो ‘मया ततमिदं सर्वम्’ आदि उपदेश दिया है, वह सब विद्याओं का राजा है; और जो भगवान ने अपने आपको प्रकट करके अर्जुन को अपने शरण होने और अपने में मन लगाने के लिए कहा है, वह संपूर्ण गोपनीय भावों का राजा है। इन दोनों- (राजविद्या और राजगुहा) को तत्त्व से समझ लेने पर ‘योग’ (नित्य योग) का अनुभव हो जाता है। अतः इस अध्याय का नाम ‘राज विद्याराज गुह्य योग’ रखा गया है। नवें अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
नवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द इस अध्याय के चौंतीस श्लोकों में से बीसवाँ और इक्कीसवाँ- ये दो श्लोक ‘उपजाति’ छन्द वाले हैं। बचे हुए बत्तीस श्लोकों में से- पहले श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ और तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘संकीर्ण-विपुला’; दूसरे श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; तीसरे और दसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; सत्रहवें श्लोक के प्रथम चरण में और तेरहवें तथा छब्बीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष पच्चीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं। |
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज