श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवान्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवादमें ‘क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग’ नामक तेरहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।। इस (तेरहवें) अध्याय में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के विभाग का वर्णन किया गया है। क्षेत्र अलग है और क्षेत्रज्ञ अलग है- ऐसा अनुभव हो जाने से क्षेत्रज्ञ का परमात्मा के साथ योग हो जाता है, जो कि नित्य है। इसलिए इस अध्याय का नाम ‘क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग’ रखा गया है। तेरहवें अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
तेरहवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द इस अध्याय के चौंतीस श्लोकों में से- पहले श्लोक के प्रथम चरण में तथा अठारहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुलाः’; सत्रहवें श्लोक के तृतीय चरण में तथा इकतीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; और तेईसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’ संज्ञा वाले छन्द हैं। शेष उनतीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं। |
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