श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- कुल का क्षय करने से होने वाले जिन दोषों को हम जानते हैं, वे दोष कौन से हैं? उन दोषों की परंपरा आगे के पाँच श्लोकों में बताते हैं।
अर्थ- कुल का क्षय होने पर सदा से चलते आये कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं और धर्म का नाश होने पर[1] संपूर्ण कुल को अधर्म दबा लेता है। व्याख्या- ‘कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः’- जब युद्ध होता है, तब उसमें कुल[2]का क्षय[3] होता है। जब से कुल आरंभ हुआ है, तभी से कुल के धर्म अर्थात कुल की पवित्र परंपराएँ, पवित्र रीतियाँ, मर्यादाएँ भी परंपरा से चलती आयी हैं। परंतु जब कुल का क्षय हो जाता है, तब सदा से कुल के साथ रहने वाले धर्म भी नष्ट हो जाते हैं अर्थात जन्म के समय, द्विजाति संस्कार के समय, विवाह के समय, मृत्यु के समय और मृत्यु के बाद किए जाने वाले जो-जो शास्त्रीय पवित्र रीति-रिवाज हैं, जो कि जीवित और मृतात्मा मनुष्यों के लिए इस लोक में और परलोक में कल्याण करने वाले हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। कारण कि जब कुल का ही नाश हो जाता है, तब कुल के आश्रित रहने वाले धर्म किसके आश्रित रहेंगे? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज