श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
पंचदश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूतप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘पुरुषोत्तम योग’ नामक पंद्रहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।।15।।
इस अध्याय के बीस श्लोकों में से दूसरा और तीसरा और चौथा- ये तीन श्लोक ‘उपजाति’ छंद वाले हैं; और पाँचवाँ तथा पंद्रहवाँ- ये दो श्लोक ‘इंद्रवज्रा’ छंद वाले हैं। बचे हुए पंद्रह श्लोकों में– सातवें श्लोक के प्रथम और तृतीय चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘जातिपक्ष-विपुला’; नवें श्लोक प्रथम चरण में तथा बीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; अट्ठारहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; उन्नीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; संज्ञा वाले छंद हैं। शेष दस[1] श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप छन्द के लक्षणों से युक्त हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1,6,8, 10-14, 16-17
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