श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
मार्मिक बात मनुष्य की सांसारिक प्रवृत्ति संसार के पदार्थों को सच्चा मानने, देखने, सुनने और भोगने से होती है तथा पारमार्थिक प्रवृत्ति परमात्मा में श्रद्धा करने से होती है। जिसे हम अपने अनुभव से नहीं जानते पर पूर्व के स्वाभाविक संस्कारों से, शास्त्रों से, संत-महात्माओं से सुनकर पूज्यभावसहित विश्वास कर लेते हैं, उसका नाम है- श्रद्धा। श्रद्धा को लेकर ही आध्यात्मिक मार्ग में प्रवेश होता है, फिर चाहे वह मार्ग कर्मयोग का हो, चाहे ज्ञानयोग का हो और चाहे भक्तियोग का हो, साध्य और साधन- दोनों पर श्रद्धा हुए बिना आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति नहीं होती। मनुष्य-जीवन में श्रद्धा की बड़ी मुख्यता है। मनुष्य जैसी श्रद्धा वाला है, वैसा ही उसका स्वरूप, उसकी निष्ठा है- ‘यो यच्छ्रद्धः स एव सः’।[1] वह आज वैसा न दीखे तो भी क्या? पर समय पाकर वह वैसा बन ही जाएगा। आजकल साधक के लिए अपनी स्वाभाविक श्रद्धा को पहचानना बड़ा मुश्किल हो गया है। कारण कि अनेक मत-मतान्तर हो गये हैं। कोई ज्ञान की प्रधानता कहता है, कोई भक्ति की प्रधानता कहता है, कोई योग की प्रधानता कहता है, आदि-आदि। ऐसे तरह-तरह के सिद्धांत पढ़ने और सुनने से मनुष्य पर उनका असर पड़ता है, जिससे वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है कि मैं क्या करूँ? मेरा वास्तविक ध्येय, लक्ष्य क्या है? मेरे को किधर चलना चाहिए? ऐसी दशा में उसे गहरी रीति से अपने भीतर के भावों पर विचार करना चाहिए कि संग से बनी हुई रुचि, शास्त्र से बनी हुई रुचि, किसी के सिखाने से बनी हुई रुचि, गुरु के बताने से बनी हुई रुचि- ऐसी जो अनेक रुचियाँ हैं, उन सबके मूल में स्वतः उद्बुद्ध होने वाली अपनी स्वाभाविक रुचि क्या है? मूल में सबकी स्वाभाविक रुचि यह होती है कि मैं संपूर्ण दुःखों से छूट जाऊँ और मुझे सदा के लिए महान सुख मिल जाए। ऐसी रुचि हरेक प्राणी के भीतर रहती है। मनुष्यों में तो यह रुचि कुछ जाग्रत रहती है। उनमें पिछले जन्मों के जैसे संस्कार हैं और इस जन्म में वे जैसे माता-पिता से पैदा हुए जैसे वायुमंडल में रहे, जैसी उनको शिक्षा मिली, जैसे उनके सामने दृश्य आये और वे जो ईश्वर की बातें, परलोक तथा पुनर्जन्म की बातें, मुक्ति और बंधन की बातें, सत्यसंग और कुसंग की बातें सुनते रहते हैं, उन सबका उन पर अदृश्य रूप से असर पड़ता है। उस असर से उनकी एक धारणा बनती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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