श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । अर्थ- नागों में अनन्त (शेषनाग) और जल-जन्तुओं का अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरों में अर्यमा और शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ। व्याख्या- ‘अनन्तश्चास्मि नागानाम्’- शेषनाग संपूर्ण नागों के राजा हैं।[1] इनके एक हजार फण हैं। ये क्षीरसागर में सदा भगवान की शय्या बनकर भगवान को सुख पहुँचाते रहते हैं। ये अनेक बार भगवान के साथ अवतार लेकर उनकी लीला में शामिल हुए हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘वरुणो यादसामहम्’- वरुण संपूर्ण जल-जन्तुओं के तथा जल-देवताओं के अधिपति हैं और भगवान के भक्त हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘पितृणामर्यमा चास्मि’- कव्यवाह, अनल, सोम आदि सात पितृगण हैं। इन सबमें अर्यमा नाम वाले पितर मुख्य हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘यमः संयमतामहम्’- प्राणियों पर शासन करने वाले राजा आदि जितने भी अधिकारी हैं, उनमें यमराज मुख्य हैं। ये प्राणियों को उनके पाप-पुण्यों का फल भुगतान कर शुद्ध करते हैं। इनका शासन न्याय और धर्मपूर्वक होता है। ये भगवान के भक्त और लोकपाल भी हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन विभूतियों में जो विलक्षणता दिखती है, वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है। वह तो भगवान से ही आयी है और भगवान की ही है। अतः हमें इनमें भगवान का ही चिन्तन होना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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