भागवत सुधा -करपात्री महाराजजिस गंगा के जल में शीतलता, मधुरता, पवित्रता न हो वह गंगाजल गंगाजल है? जिस कृष्ण में माधुर्यसारसर्वस्व (राधा) न हो वह कृष्ण कृष्ण है? इसलिए कहते हैं- ‘राधा बिना कृष्ण आधा।’ हम तो कहते हैं, ‘राधा बिना कृष्ण आधा से भी कम।’ माधुर्यसार सर्वस्व की अधिष्ठात्री राधारानी वृषभानुनन्दिनी नहीं तो कहाँ का अचिन्त्य-अनन्त सुधा समुद्र? इस दृष्टि से दोनों में अभेद है। फिर भी लीला रस विशेष के विकास के लिए इनका आविर्भाव है। उस भेद के आविर्भाव में श्री राधारानी को कृष्ण बड़े दुर्लभ प्रतीत होते हैं। जैसे रंक को चिन्तामणि मिल जाय तो उसके आश्चर्य का क्या ठिकाना? राधारानी समझती थीं हमारे लिए श्रीकृष्ण चन्द्र परमानन्दकन्द मदनमोहन तो बड़े दुर्लभ हैं- ‘दुरापजनवर्तिनी’.................. विधाता ने रति हम को दी, प्रीति हम को दी, पर दी ऐसे जन में जो दुराप (दुर्लभ)है। रंक को चिन्तामणि कभी सुलभ भी हो सकती है, पर हमारे लिए श्याम सुन्दर ब्रजेन्द्र नन्दन मदन मोहन बडे़ दुर्लभ हैं। इसीलिए वे दूसरों के सौभाग्य पर सिहाती हैं। अयि तडित्वमसौ क्व नु किं तपः, कियदहो कृतवत्यसि तद्वद। मेघ को देखती हुई श्री राधिका की भावना यह है कि हे सखि! विद्युत्! आ हा हा! तुम बताओ तो सही। किस स्थान पर, कितने परिमाण का कौन-सा तप कर चुकी हो? क्यों कि श्रीकृष्ण के वक्षःस्थल के समान श्यामवर्ण वाले इस जलधर को प्राप्त कर सदा क्रीड़ा करती हो।।) तडितः पुण्यशालिन्यः सदा या धनजीवनाः। सदा श्यामघन ही जिनका जीवन है, वे विजलियाँ ही पुण्यशालिनी हैं। क्योंकि जो श्यामधन के साथ ही दिखाई देती हैं, किन्तु उसके बिना कदापि नहीं दीखतीं।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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