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- एइ एइ लीला जतो, हिये रहु अविरत,
- अतिशय धारारूप धरि।
- ‘कृष्णकर्णामृत’ एइ, सदा पान करे जेइ,
- तार प्रेम हय हिया भरि।।
- कृष्ण कहे, धर्म अर्थ, काम मोक्ष पुरुषार्थ,
- जिनिया आमि से प्रेमफल।
- से मोरे साक्षाते पाइला, मोरे छाड़ि मोर लीला,
- स्फूर्ति लागि केने मागो वर।।
- इहा शुनि लीलाशुक, कहे मने पाइया सुख,
- भक्ति सिद्धांत उट्टंकिया।
- सचातुरी भंगि कथा, ‘कृष्णकर्णामृत’ – मता,
- शुनो सबे एक मन हइया।।106।।
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