श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
इसके अतिरिक्त, हम लोगों का चिन्तन या अनुस्मृति तुम्हारे शैशव अर्थात् चपलता या शिशुविषयक तरुणाई भरे कैशोर से चपलता के साथ विवर्धित हो। इस विषय में हम लोगों में किसी प्रकार की जड़ता न आये। तुम्हारी चपलता से हम लोगों के वाक्य नेत्र और कान भी चपलता प्राप्त करें। श्रीकृष्ण हैं लीलाचपल। प्रफुल्लित कमल-पवन- हिल्लोलों से जितना ही चञ्चल होता है, उसके मधुपान के इच्छुक पिपासित भ्रमरों की पिपासा और चञ्चलता भी उनती ही बढ़ जाती है, कारण- वे स्थित होकर कमल का मधुपान नहीं कर सकते। भक्त-मधुपों की पिपासा और चपलता भी बढ़नी चाहिए, श्रीकृष्ण के रूप, गुण, लीलामाधुर्यरूपी मकरन्द की तृष्णा औ चापल्य से। तभी लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण अतिशय लीलाचपल हैं। प्रेमिकवर विद्वान लीलाशुक श्रीकृष्ण की चपलता के अनुरूप अपनी इन्द्रिय आदि की चपलता के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।।105।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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