श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील चैतन्यदास गोस्वामिपाद कहते हैं- श्रीकृष्ण मानो कह रहे हैं-[2] मेरे खण्डित राग आदि की भला क्या शोभा, और वेश, भी भला क्या? इसके उत्तर में बोले- तुम्हारे चरण ही इसका प्रमाण हैं। हे देव ! तुम्हारे वदन-इन्दु की शोभा देखकर आकाश का चाँद स्वयं को दश भागों में बाँट कर तुम्हारे श्रीचरणों में शरण लेकर अतिशय शोभा को प्राप्त हुआ है। ऐसा अपूर्वत्व है तुम्हारी शोभा और वेश का ! श्रीकृष्ण का अंग-प्रत्यंग सभी भूषणों का भूषण है। वे सभी अवस्थाओं में सुन्दरशेखर हैं। उनके केश-वेश आदि भ्रष्ट (अस्तव्यस्त) होते हैं, तब भी किसी अनिर्वचनीय शोभा का विकास होता है। मुझे यह दर्शन हुए हैं तुम्हारी कृपा से ही। तुम्हारी करुणा का विलास कितना अधिक है, मैं नहीं जानता।।96।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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