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- श्रील यदुनन्नदन ठाकुर का पद्यानुवाद
- कृष्ण अंग अति मनोहर।
- मधुर हैते सुमधुर, बहे चंद्र- ज्योत्स्ना पूर,
- त्रिभुवन जाहाते उजोर।।
- कहितेइ मुखचंद्र, देखि पुनः हासे मन्द,
- शिर ढुलाइया कहे वाणी।।
- मुख अति मनोहर, ताहा हैते सुमधुर,
- ताहा हैते सुमधुर मानि।।
- कहितेइ देखे स्मित, अलौकिक तार रीत,
- स्मित कथा कहन ना जाय।
- मुखाब्जे बहये गन्ध, जाते गोपनारी अन्ध,
- कृष्णमुख समाधुर्यमय।।
- कहितेइ कृष्णावेश, देखये मोहनवेश,
- ताहा देखि कहे पुनर्बार।
- कृष्ण ‘कर्णामृत’ – कथा, शुनो छाड़ो अन्य वार्ता,
- जाते सर्व माधुर्येर सार।।92।।
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