श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील चैतन्यदास गोस्वामिपाद कहते हैं- श्रीलीलाशुक पुनः व्रजदेवियों की स्तनतटी के साम्राज्य को विस्तृत कर श्रीकृष्ण के प्रति अंग की माधुरी का अनुभव कर कह रहे हैं। इनके श्रीचरणाबिन्द अति आश्चर्यजनक हैं। प्रियाजी के वक्ष के कुंकुमराग से रञ्जित हैं, अतएव अद्भुत शोभा से युक्त हैं। ऊर्ध्वदिक् देखकर बोले- इनके वदनारविन्द पर प्रियाजी का दशनक्षत अंकित है, अतएव अति अद्भुत शोभान्वित है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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