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- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- देखो सखि ! आश्चर्य गोविन्द।
- कान्तिपुञ्ज मनोरञ्ज नेत्रामृत बन्ध।।
- किशोरांग नृत्यरंग मनोहर भाँति।
- नीलमणि कान्ति जिनि अंगशोभा अति।।
- शरतेर पद्मवर क्रम-सुविलास।
- शिक्षागुरु हस्तधरु सर्वमनोल्लास।।
- कल्पशाखी मन माखि प्रथम पल्लव।
- पदद्वये ता लंघये किवा अनुभव।।
- त्रिभुवने उपमाने शोभये दुर्मद।
- द्विनयने ताँरे जिने श्रीमुख सम्पद।।
- पुनर्वार बाह्य आर अन्तर्दशा नाशि।
- काम लोभ उत्पादक कृष्ण शोभाराशि।।
- दरशन मुखघन मगन मानसे।
- से आनन्द कहे छन्दे आनन्द प्रकाशे।।86।।
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