श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
वे सर्वज्ञ होने के कारण मेरी अन्तरवृत्ति सभी जानते हैं और मेरा मन हरने वाली यह सर्वविजयी ज्योति मेरे नयनों में पूरी-पूरी प्रविष्ट होकर परमानन्द भोग कर रही है। ‘हन्त’ शब्द आश्चर्य के लिए।।83।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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