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- देखो नृत्यगति जाते, दिक् दिक् चापल्य ताते,
- किम्वा दृशे दृशे नव नव।
- उज्ज्वल चरणद्वय, भूषण नूपुरादय,
- से भूषार आदरानुभव।।
- त्यक्तगृहा गोपीगण, ताहार आश्रयस्थान,
- सेइ पद चलि आइसे पथे।
- एइ हेनो पादद्वन्द्वे, कैछे चले एइ स्कन्धे,
- हियापद्म देइ ओ तलाते।।
- नुपुरेर ध्वनि आर, नृत्यगति पद तार,
- अनुसारे वेणुगान जार।
- किम्वा निरन्तर गान, वेणु अति अनुणम्,
- तेंहो आइसे आगे तो आमार।।
- तबे तो साक्षात तार, दर्शन आनन्द सार,
- से आनन्दे मग्न मन हइ।
- कहे लीलाशुक वाणी, कृष्ण कर्ण-रसायनी,
- शुनो सबे चित्त मन देइ।।81।।
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