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- मञ्जु वेणुगीत गान, स्मृति करि पुनः पुनः,
- सृष्टि करि करये गायन।
- नव नय क्षणे क्षणे, जाते सृष्टि विहरणे,
- कि अपूर्व देखि मनोरम्।।
- मृदु-पादाम्बुज तल, पल्लव हैते सुकोमल,
- हाय ताते कैछे चलि आइसे।
- मोर नेत्र पद्मोपरि, ओइ पादाम्बुज धरि,
- आशु जानि कोथा लागे पाशे।।
- ताहाते नूपुरवर, मृदु शब्द मनोहर,
- मन्थर गमन अनुमानि।
- गानादि स्मरण हैते, चित्तमग्न हैलो ताते,
- एइ लागि मन्थर गति जानि।।
- अतः पर पूर्वे जतो, प्रार्थना करिलो कतो,
- कबे कृष्ण देखिबे नयन।
- उत्कण्ठा सफल हैला, कृष्ण दरशन पाइला,
- हर्षे पुनः कहे मनोरम।।78।।
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