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- पुनः माधुर्यानुभवे, कहते लागिला तबे,
- सर्व अंगे ज्योतिःपुञ्ज स्फुरे।
- किबा कान्ति पूर एइ, चित्र अवयवमयी,
- आश्चर्य लागये मोर पुरे।।
- पुनः ताँर सौष्ठव, देखिये कहये सब,
- अत्याश्चर्य हइलो जे मने।
- अपूर्व विधाता शिल्प, श्रृंगार भंगीर कल्प,
- भूषण- भंगीर चित्र सने।।
- ताते हैते अतिशय, स्फूर्ति आविर्भाव हय,
- एइ चित्र-विचित्र माधुरी।
- अल्प बुद्धि विधि आदि, अगम्य वैभव साधि,
- हेनो चित्र माधुर्येर धुरि।।
- एतेक कहिते राइ, साक्षात् मानये ताइ,
- सौभाग्यातिशय मने करि।
- किबा एइ सत्य हय, सुविचारे प्रलपय,
- लीलाशुक कहे श्लोक पड़ि।।59।।
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