नीलाचल में श्रीमन्महाप्रभु ने समुद्रतटवर्ती पुष्प-उद्यान में इस लीला के आवेश में तुलसी आदि और हरिणियों से श्रीकृष्ण के विषय में पूछा है-
“तुलसि मालति जूथि माधवि मल्लिके।
- तोमार प्रिय कृष्ण आइला तोमार अन्तिके।।
- तुमि सब हओ आमार सखीर समान।
- कृष्णोद्देश कहि सबे राखहो पराण।।
- उत्तर ना पाइया पुनः भावेन अन्तरे।
- ए तो कृष्णदासी भये ना कहे आमारे।।
- आगे मृगीगण देखि कृष्णांगन्ध पाइया।
- तार मुख देखि पुछे निर्णय करिया।।
- कहो मृगि ! राधासह श्रीकृष्ण सर्वथा।
- तोमाय सुख दिते आइला नाहिक अन्यथा।।
- राधार प्रिय सखी आमरा नहि बहिरंग।
- दूरे- हैते जानि ताँर जैछे अंगसंग।।
- राधा-अंगसंगे कुचकुंकुमे भूषित।
- कृष्ण-कुन्दमाला गन्धे वायु सुवासित।
- कृष्ण इहाँ छाड़ि गेला इहों विरहिणी।
- किबा उत्तर दिबे एइ – ना शुने काहिनी।।”
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