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- ताहे नेत्रेर भंगी, देखि चित्त हय रंगी
- वर्णन ना हय रूप शोभा।
- चापल्य जन्माय ताते, निर्वाच्य ना हय जाते
- अदर्शने मने दृष्ट लोभा।।
- अतएव तारि दोष, मोरे केनो करो रोष
- सखीगण देखो विचारिया।
- अन्य नारीगण भये, आमि जानि हेनो हये
- अल्प देखे मानसे पाशिया।।
- कहितेइ पूर्वे जेनो, कृष्ण कैलो सुप्रेरण
- स्मृति हैते उन्माद बाड़िलो।
- गोविन्द कहेन जेनो, आमि तुया मने केनो
- सुचापल्यगण, बाड़ाइलो।।
- एइरूपे कृष्णचंद्र, दर्शनादर्शन मन्द
- वैकल्य उद्वेग बाड़ि गेला।
- गोविन्देर उपलम्भे, कथा कहे महारम्भे
- पुनः एक श्लोक पाठ कैला।।35।।
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