|
- एतेक कहिते पुनः, देखे अति विलक्षण,
- गोविन्देर रसिकता हैते।
- गोपांगनार विदग्धता, बाड़े अतिशय तथा,
- बाड़ाइया उत्कण्ठिता ताते।।
- ता सबा छाड़िया रासे, कुञ्जलीलाय मन बासे,
- राइ-संगे विलासेर काजे।
- सर्व समाधान करे, चुम्बने आश्लेष धरे,
- एइरूपे कृष्णेर अंग साजे।।
- से रूप कृष्णेर देखि, लीलाशुक हैलो सुखी,
- राइ-संगे विलास देखिते।
- औत्सुक्य बाड़िया गेलो, श्लोकबन्धे प्रकाशलो,
- केवा पारे से श्लोक वर्णिते।।10।।
|
|