विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 107
भीष्मक ने कहा- प्रभो! आज मेरा जन्म सफल, जीवन सुजीवन और करोड़ों जन्मों के कर्मों का मूलोच्छेद हो गया; क्योंकि जो लोकों के विधाता, संपूर्ण संपत्तियों के प्रदाता और तपस्याओं के फलदाता हैं; स्वप्न में भी जिनके चरणकमल का दर्शन होना दुर्लभ है; वे सृष्टिकर्ता स्वयं ब्रह्मा मेरे आँगन में विराजमान हैं। योगीन्द्र, सिद्धेंद्र, सुरेंद्र और मुनीन्द्र ध्यान में भी जिनका दर्शन नहीं कर पाते, वे देवाधिदेव शंकर मेरे आँगन में पधारे हैं, जो काल के काल, मृत्यु की मृत्यु, मृत्युञ्जय और सर्वेश्वर हैं; वे भगवान विष्णु मनुष्यों के दृष्टिगोचर हुए हैं। जिनके हजारों फणों के मध्य एक फणपर सारा चराचर विश्व स्थित है और संपूर्ण वेदों में जिनकी महिमा का अंत नहीं है; वे ये भगवान अनन्त मेरे आँगन में वर्तमान हैं। जो संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, सर्वप्रथम जिनकी पूजा होती है और जो देवगणों में श्रेष्ठ हैं; वे गणेश मेरे आँगन में उपस्थित हैं। जो मुनियों और वैष्णवों में सर्वश्रेष्ठ तथा ज्ञानियों के गुरु हैं; वे भगवान् सनत्कुमार प्रत्यक्ष रूप से मेरे आँगन में विद्यमान हैं। ब्रह्मा के जितने पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र और वंशज हैं; वे सभी ब्रह्मतेज से प्रज्वलित होते हुए आज मेरे घर अतिथि हुए हैं। अहो! मेरा यह वासस्थान कल्पान्तपर्यन्त तीर्थतुल्य हो गया। जिनके चरणोदक से तीर्थ पावन हो जाते हैं, उन्हीं चरणों के स्पर्श से आज मेरा गृह विशुद्ध हो गया है, क्योंकि भूतल पर जितने तीर्थ हैं, वे सभी सागर में हैं और जितने सागर में तीर्थ हैं, वे सभी ब्राह्मण के चरणों में वास करते हैं। जो प्रभु प्रकृति से परे हैं; ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवों के लिए ध्यान द्वारा असाध्य हैं; योगियों के लिए भी दुराराध्य, निर्गुण, निराकार तथा भक्तानुग्रहमूर्ति हैं; ब्रह्मा, शिव और शेष आदि देवगण जिनके चरणकमल का ध्यान करते हैं; जो कुबेर, गणेश और सूर्य के लिए भी दुर्लभ हैं; वे ही भगवान साक्षात रूप से मेरे घर पधारकर मनुष्यों के नयन-गोचर हुए हैं। यों कहकर भीष्मक स्वयं श्रीकृष्ण को सामने लाकर सामवेदोक्त स्तोत्र द्वारा उन परमेश्वर की स्तुति करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |