विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 103-104
गाँवों और नगरों में चना आदि अन्नों के पेड़ मंगलप्रद होते हैं, गाँव, नगर तथा शिविर में गन्ने का वृक्ष सदा शुभदायक होता है। अशोक, सिरिस और कदम्ब शुभप्रद होते हैं। हल्दी, अदरक, हरीत की और आमल की- ये गाँवों तथा नगरों में सदा शुभदायिनी तथा कल्याणकारिणी होती हैं। वास्तुभूमि में स्थापन करने वालों के लिए गज की अस्थि शुभदायिनी और उच्चैःश्रवा के वंशज घोड़ों की हड्डी कल्याणकारिणी होती है। इनके अतिरिक्त अन्य पशुओं की अस्थि शुभकारक नहीं होती; वह विनाश का कारण होती है। वानरों, मनुष्यों, गदहों, गौओं, कुत्तों, सियारों और बिलावों की हड्डी अमंगलकारिणी होती है। शिविर के पूर्व, पश्चिम, उत्तर और ईशानकोण में जल का रहना उत्तम है। इनके अतिरिक्त अन्य दिशाओं में अशुभ होता है। शिल्पिन! बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि जिसकी लंबाई-चौड़ाई समान हो, ऐसा घर न बनावें; क्योंकि चौकोर गृह में वास करना गृहस्थों के धन का नाशक होता है। घर की परिमित लंबाई-चौड़ाई में पृथक-पृथक दोका भाग देने से यदि शेष शून्यरहित हो तो शुभ अन्यथा शून्य शेष आने पर वह घर मनुष्यों के लिए शून्यप्रद होता है। गृहों की चौड़ाई में पश्चिम से दो हाथ पूर्व और लंबाई में दक्षिण से तीन हाथ हटकर घर का तथा परकोटे का द्वार रखना शुभदायक होता है। मध्यभाग में दरवाजा नहीं बनना चाहिए; क्योंकि वह कुछ कम बेश में ही रखने पर शुभकारक होता है। चौकोर घर चंद्रवेध होने पर मंगलप्रद होता है; परंतु मंगलप्रद गृह भी सूर्यवेध होने पर अंगलकारक हो जाता है। उसी प्रकार सूर्यवेध आँगन भी अमंगलदायक होता है। घर के भीतर लगायी हुई तुलसी मनुष्यों के लिए कल्याणकारिणी धन-पुत्र प्रदान करने वाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देने वाली होती। प्रात:काल तुलसी का दर्शन करने से सुवर्ण-दान का फल प्राप्त होता है। मकान के पूर्व और दक्षिण भाग में मालती, जूही, कुन्द, माधवी, केतकी, नागेश्वर, मल्लिका (मोतिया), काञ्चन (श्याम धतूर), मौलसिरी और शुभदायिनी अपराजिता (विष्णुकान्ता)- इन पुष्पों का उद्यान शुभद होता है; इसमें तनिक भी संशय नहीं है। गृहस्थ को सोलह हाथ से ऊँचा गृह नहीं बनवाना चाहिए। इसी तरह बीस हाथ से बुद्धिमान पुरुष को घर के समीप तथा गाँव के बीच में बढ़ई, तेली और सोनार को नहीं बसाना चाहिये; किंतु मकान के पास-पड़ोस में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सतशूद्र, ज्योतिषी, भाट, वैद्य और पुष्कर (माली)- को अवश्य रहने देना चाहिए। शिविर के चारों ओर सौ हाथ लंबी और दस हाथ गहरी खाई प्रशस्त मानी जाती है। उस खाई का दरवाजा भी ऐसा संकेतयुक्त होना चाहिए, जो शत्रु के लिए अगम्य हो; परंतु मित्र सुखपूर्वक आ जा सकें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |