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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 103-104
तब विश्वकर्मा बोले- जगद्गुरो! वे प्रशस्त वृक्ष कौन-कौन हैं और कौन निषिद्ध हैं तथा शुभ-अशुभ प्रदान करने वाले हैं? उन सबका परिचय दीजिए। प्रभो! साथ ही यह भी बतलाइये कि किनकी अस्थि पड़ने से शिविर शुभ और किनकी अस्थि से अशुभ होता है? शिविर की किस दिशा में जल मंगलकारक और किस दिशा में अमांगलिक होता है? और कौन वृक्ष किस दिशा में कल्याणप्रद होता है? सुरेश्वर! गृहों तथा आँगनों का विस्तार कितना होना चाहिए? किस दिशा में पुष्पोद्यान मंगलप्रद होता है? सुरेश्वर! परकोटों, खाइयों, दरवाजों, गृहों और चहारदीवारियों का क्या प्रमाण है? प्रभो! शिविर-निर्माण में किस-किस वृक्ष की लकड़ी प्रशस्त मानी गयी है और किन वृक्षों के काष्ठ अमंगलजनक होते हैं? यह सब मुझे बतलाने की कृपा कीजिए। श्रीभगवान ने कहा- देवशिल्पिन! गृहस्थों के आश्रम में नारियल का वृक्ष धन प्रदान करने वाला होता है। वही वृक्ष यदि शिविर के ईशानकोण अथवा पूर्व दिशा में हो तो पुत्रप्रद होता है। वह मनोहर वृक्षराज सर्वत्र मंगल का दाता होता है। यदि पूर्व दिशा में आम का वृक्ष हो तो वह मनुष्यों को संपत्ति प्रदान करता है और सर्वत्र शुभदायक होता है। बेल, कटहल, जम्बीरी नीबू तथा बेर के वृक्ष पूर्व दिशा में संतानदायक, दक्षिण में धनदाता तथा सर्वत्र संपत्तिप्रद होते हैं। इनसे गृहस्थ की उन्नति होती है। जामुन, अनार, केला तथा आमला के वृक्ष पूर्व बन्धुप्रद तथा दक्षिणा में मित्र की वृद्धि करने वाले होते हैं और सर्वत्र शुभदायक होते हैं। सुवाक दक्षिण में धन-पुत्र-शुभप्रद, पश्चिम में हर्षदायक और ईशानकोण में तथा सर्वत्र सुखद होता है। भूतल पर चम्पा का वृक्ष का शुद्ध तथा सर्वत्र मंगल कारक होता है। लौकी, कुम्हड़ा, आयाम्बु, पलाश, खजूर और कर्कटी के वृक्ष शिविर में मंगलप्रद होते हैं। विश्वकर्मन! बेल और बैंगन के पौधे भी शुभदायक होते हैं। सारी फलवती लताएँ निश्चय ही सर्वत्र शुभदायिनी होती हैं। शिल्पिन! इस प्रकार प्रशस्त वृक्षों का वर्णन कर दिया गया; अब निषिद्ध का वर्णन सुनो। नगर अथवा शिविर में वन्यवृक्ष का रहना निषिद्ध है। शिविर में वटवृक्ष का रहना ठीक नहीं है; क्योंकि उससे सदा चोर का भय लगा रहता है, किंतु नगरों में उसका रहना उत्तम है; क्योंकि उसके दर्शन से पुण्य होता है। नगर, गाँव और शिविर में सेमल के वृक्ष का रहना सर्वथा निषिद्ध है। वह सदा राजाओं को दुःख देता रहता है। हे देवशिल्पी! इमली का वृक्ष नगरों और गाँवों में तो प्रशस्त है; परंतु शिविर में उसका रहना ठीक नहीं है। वह विद्या-बुद्धि का विनाशक तथा सदा दुःखदायक होता है। उससे निश्चय ही प्रजा और धन की हानि होती है; अतः विद्वान को उचित है कि यत्नपूर्वक उसका परित्याग कर दे। खजूर और काँटेदार वृक्ष भी शिविर में नहीं रहने चाहिए; क्योंकि वे विद्या और बुद्धि को नष्ट कर देने वाले होते हैं; अतः उनसे दूर रहना ही ठीक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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