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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 88-89
[तत्पश्चात नन्द से श्रीकृष्ण ने कहा-] ‘नन्द जी! अब आप दुर्लभ ज्ञान से संयुक्त होने के कारण मोह का त्याग करके प्रसन्न मन से व्रजवासियों सहित व्रज को लौट जाइये। व्रजराज! जाइये, जाइये, घर जाइये, व्रज को पधारिये। अब आपको संपूर्ण तत्त्वों का ज्ञान हो गया। आपने मुनियों तथा देवताओं के दर्शन कर लिए और मेरे द्वारा अत्यंत दुर्लभ नाना प्रकार के इतिहास, धनवर्धक आख्यान और जन्म एवं पाप का विनाश करने वाला दुर्गा का स्तोत्रराज भी सुन लिया। जो कुछ सामने उपस्थित था, उसका मैंने आपसे हर्ष और सुखपूर्वक वर्णन कर दिया। मैंने बाल चपलतावाश जो कुछ अपराध किया हो, उसे क्षमा कीजिए। तात! जो सुख मैंने माता-पिता के राजमहल में नहीं किया, उससे बढ़कर तथा स्वर्ग से भी परम दुर्लभ सुख आपके यहाँ किया है। मेरे प्रिय वचन, नम्रता, विनय, भय, बहुसंख्यक, परिहास, यशोदा, गोपकागण, बालसमूह और विशेषतया राधा- ये सभी एकत्र स्थित हैं। उन बन्धुवर्गों के साथ कर्मानुसार यहीं सुख भोगकर उत्तम गोलोक को जाओ। तात! यशोदा, रोहिणी, गोपिकागण, गोपबालक, वृषभानु, गोपसमूह, राधा की माता कलावती और राधा के साथ आप पार्थिव देह को त्यागकर और दिव्य देह धारण करके गोलोक जाएँगे। राधा और राधा की माता कलावती की उत्पत्ति योनि से नहीं हुई है; अतः वह निश्चय ही अपने उसी नित्यदेह से गोलोक में जायेगी। कलावती पितरों की मानसी कन्या है; अतः धन्य और माननीय है। इसी प्रकार सीतामाता, दुर्गामाता, मेनका, दुर्गा, तारा और सुंदरी सीता- ये सभी अयोनिजा तथा धन्य हैं। वे तथा मेना और कलावती योनि से न उत्पन्न होने के कारण धन्यवाद की पात्र हैं। तात! इस प्रकार मैंने परम दुर्लभ गोपनीय आख्यान का वर्णन कर दिया तथा मैंने और दुर्गा ने आपको यह वरदान भी दे दिया।’ श्रीकृष्ण का वचन सुनकर श्रीकृष्णभक्त व्रजेश्वर उन भक्तवत्सल जगदीश्वर से पुनः बोले। नन्द ने कहा- प्रभो! श्रीकृष्ण! चारों युगों के जो-जो सनातन धर्म होते हैं, उनका तथा कलियुग की समाप्ति में कलि के जो-जो गुण-दोष होते हों और पृथ्वी, धर्म तथा प्राणियों की क्या गति होती है- इन सबका क्रमशः विस्तारपूर्वक मुझसे वर्णन कीजिए। नन्द की बात सुनकर कमलनयन श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गये, फिर उन्होंने मधुरताभरी विचित्र कथा कहना आरंभ किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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