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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 74-75
किसी के साथ बात करने, शरीर को छूने, सोने, बैठने और भोजन करने से उन दोनों के पाप एक दूसरे में अवश्य संचरित होते हैं। ठीक उसी तरह, जैसे तेल का बिन्दु पानी में पड़ने से फैल जाता है। हिंसक जन्तु के समीप न जाय; क्योंकि उसके पास जाना दुःख का कारण होता है। दुष्ट के साथ मेल-जोल न बढ़ावे; क्योंकि वह शोकप्रद होता है। ब्राह्मणों, गौओं तथा विशेषतः वैष्णवों की हिंसा न करे; उनकी हिंसा सर्वनाश का कारण बन जाती है। देवता, देवपूजक, ब्राह्मण और वैष्णवों के धन का अपहरण न करे; क्योंकि वह धन सर्वनाश का कारण होता है। जो अपने या दूसरे के द्वारा दी हुई ब्राह्मणवृत्ति का अपहरण करता है; वह साठ हजार वर्षों तक विष्ठा का कीड़ा होता है। ब्राह्मण को देने के लिए जो दक्षिणा संकल्प की जाती है, वह यदि न दे दी जाए तो एक रात बीतने पर दूनी, एक मास बीतने पर सौगुनी और दो मास बीतने पर वह सहस्रगुनी हो जाती है। एक वर्ष बीत जाय तो दाता नरक में पड़ता है। यदि दाता न दे और मूर्ख गृहीता न माँगे तो दोनों नरक में पड़ते हैं। दाता रोगी होता है। ब्राह्मणों की हिंसा करने से अवश्य ही वंश की हानि होती है। हिंंसक मनुष्य धन और लक्ष्मी को खोकर भिखमंगा हो जाता है, देवता और ब्राह्मण को देखकर जो मस्तक नहीं झुकाता, वह शोक का भागी होता है। जो गुरु के प्रति भक्तिभाव नहीं रखता, उसे रौरव नरक का कष्ट भोगना पड़ता है। जो दुराचारिणी मूढा स्त्री साक्षात श्रीहरिस्वरूप अपने पति की ओर नहीं देखती, उलटे उसे डाँट बताती है; वह निश्चय ही कुम्भीपाक में जाती है। वाणी द्वारा डाँट बताने के कारण वह कौए की योनि में जन्म लेती है। हिंसा करने से सूकरी होती है। क्रोध करने से सर्पिणी और दर्प दिखाने से गर्द भी होती है। कुवाक्य बोलने से कुक्कुरी और विष देने से अन्धी होती है। पतिव्रता स्त्री निश्चय ही पति के साथ वैकुण्ठधाम में जाती है। जो मूढ़ शिव, पार्वती, गणेश, सूर्य, ब्राह्मण, वैष्णव तथा विष्णु की निन्दा करता है; वह महारौरव नामक नरक में गिरता है। पिता, माता, पुत्र, सती पत्नी, गुरु अनाथा स्त्री, बहिन और पुत्री की निन्दा करके मनुष्य नरकगामी होता है। जो क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ब्राह्मणों के प्रति भक्तिभाव से रहित हैं और भगवद्भक्ति से भी दूर हैं; वे निश्चय ही नरक में पकाये जाते हैं। यही दिशा पति भक्ति से शून्य नराधमा स्त्रियों की होती है। जो ब्राह्मण शालग्राम का चरणामृत पीते और भगवान विष्णु का प्रसाद खाते हैं वे तीर्थों को भी पवित्र कर देते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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