विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 27
यों कह पार्वती वेदवती को हृदय से लगाकर अपने निवास-स्थान को लौट गयीं। साध्वी वेदवती मिथिला में जाकर माया से हल द्वारा भूमि पर की गयी रेखा (हराई)– में सुखपूर्वक स्थित हो गयीं। उस समय राजा जनक ने देखा, एक नग्न बालिका आँख बंद किये भूमि पर पड़ी है। उसकी अंगकान्ति तपाये हुए सुवर्ण के समान उद्दीप्त है तथा वह तेजस्विनी बालिका रो रही है। उसे देखते ही राजा ने उठाकर गोद में चिपका लिया। जब वे घर को लौटने लगे, उस समय वहीं उनके प्रति आकाशवाणी हुई– ‘राजन! यह अयोनिजा कन्या साक्षात लक्ष्मी है; इसे ग्रहण करो। स्वयं भगवान नारायण तुम्हारे दामाद होंगे।’ यह आकाशवाणी सुन कन्या को गोद में लिये राजर्षि जनक घर को गये और प्रसन्नतापूर्वक उन्होंने लालन-पालन के लिये उसे अपनी प्यारी रानी के हाथ में दे दिया। युवती होने पर सती सीता ने इस व्रत के प्रभाव से त्रिलोकीनाथ विष्णु के अवताररूप दशरथनन्दन श्रीराम को प्रियतम पति के रूप में प्राप्त कर लिया। महर्षि वसिष्ठ ने इस व्रत को पृथ्वी पर प्रकाशित किया तथा श्रीराधा को प्राणवल्लभ के रूप में प्राप्त किया। अन्यान्य गोपकुमारियों ने इस व्रत के प्रभाव से उनको पाया। नारद! इस प्रकार मैंने गौरी-व्रत की कथा कही। जो कुमारी भारतवर्ष में इस व्रत का पालन करती है, उसे श्रीकृष्ण-तुल्य पति की प्राप्ति होती है, इसमें संशय नहीं है। भगवान नारायण कहते हैं– इस प्रकार उन गोपकुमारियों ने एक मास तक व्रत किया। वे पूर्वोक्त स्तोत्र से प्रतिदिन देवी की स्तुति करती थीं। समाप्ति के दिन व्रत पूर्ण करके गोपियों को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने काण्व-शाखा में वर्णित उस स्तोत्र द्वारा परमेश्वरी पार्वती का स्तवन किया, जिसके द्वारा स्तुति करके सत्यपरायणा सीता ने शीघ्र ही कमल-नयन श्रीराम को प्रियतम पति के रूप में प्राप्त किया था। वह स्तोत्र यह है। जानकी बोलीं– सबकी शक्तिस्वरूपे! शिवे! आप सम्पूर्ण जगत की आधारभूता हैं। समस्त सद्गुणों की निधि हैं तथा सदा भगवान शंकर के संयोग-सुख का अनुभव करने वाली हैं; आपको नमस्कार है। आप मुझे सर्वश्रेष्ठ पति दीजिये। सृष्टि, पालन और संहार आपका रूप है। आप सृष्टि पालन और संहाररूपिणी हैं। सृष्टि, पालन और संहार के जो बीज हैं, उनकी भी बीजरूपिणी हैं; आपको नमस्कार हैं। पति के मर्म को जानने वाली पतिव्रतपरायणे गौरि! पतिव्रते! पत्यनुरागिणि! मुझे पति दीजिये; आपको नमस्कार है। आप समस्त मंगलों के लिये भी मंगलकारिणी हैं। सम्पूर्ण मंगलों से सम्पन्न हैं, सब प्रकार के मंगलों की बीजरूपा हैं; सर्वमंगले! आपको नमस्कार है। आप सबको प्रिय हैं, सबकी बीजरूपिणी हैं, समस्त अशुभों का विनाश करने वाली हैं, सबकी ईश्वरी तथा सर्वजननी हैं; शंकरप्रिये! आपको नमस्कार है। परमात्मस्वरूपे! नित्यरूपिणि! सनातनि! आप साकार और निराकार भी हैं; सर्वरूपे! आपको नमस्कार हैं। क्षुधा, तृष्णा, इच्छा, दया, श्रद्धा, निद्रा, तन्द्रा, स्मृति और क्षमा– ये सब आपकी कलाएँ हैं; नारायणि! आपको नमस्कार है। लज्जा, मेधा, तुष्टि, पुष्टि, शान्ति, सम्पत्ति और वृद्धि– ये सब भी आपकी ही कलाएँ हैं; सर्वरूपिणि! आपको नमस्कार है। दृष्टि और अदृष्ट दोनों आपके ही स्वरूप हैं, आप उन्हें बीज और फल दोनों प्रदान करती हैं, कोई भी आपका निर्वचन (निरूपण) नहीं कर सकता है, महामाये! आपको नमस्कार है। शिवे! आप शंकरसम्बन्धी सौभाग्य से सम्पन्न हैं तथा सबको सौभाग्य देने वाली हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |