ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 65
माया द्वारा सम्पूर्ण स्त्रियों के रूप में मेरा ही प्रादुर्भाव हुआ है। परम पुरुष परमात्मा श्रीकृष्ण ने अपनी भ्रूभंगलीला से मेरी सृष्टि की है। उन्हीं पुरुषोत्तम ने अपनी भ्रूभंगलीला से उस महान विराट की भी सृष्टि की है, जिसके रोमकूपों में सदैव असंख्य विश्व-ब्रह्माण्ड निवास करते हैं। वे सब-के-सब कृत्रिम हैं, तथापि माया से सब लोग उन अनित्य लोकों में भी सदा नित्यबुद्धि करते हैं। सातों द्वीपों और समुद्रों से युक्त पृथ्वी, नीचे के साथ पाताल और ऊपर के सात स्वर्ग– इन सबको मिलाकर एक विश्व-ब्रह्माण्ड कहा गया है, जिसकी रचना ब्रह्मा द्वारा हुई है। इस तरह के जो असंख्य ब्रह्माण्ड हैं, उन सबमें पृथक-पृथक ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि विद्यमान हैं। उन सबके ईश्वर श्रीकृष्ण हैं। यही परात्पर ज्ञान है। वेदों, व्रतों, तीर्थों, तपस्याओं, देवताओं और पुण्यों का जो सारतत्त्व है, वह श्रीकृष्ण हैं। श्रीकृष्ण-भक्ति से हीन जो मूढ़ मनुष्य है, वह निश्चय ही जीते-जी मृतक के समान है। श्रीकृष्ण-भक्तों को छूकर बहने वाली वायु का स्पर्श पाकर सारे तीर्थ पवित्र हो गये हैं। श्रीकृष्ण-मन्त्रों का उपासक ही जीवन्मुक्त माना गया है। जप, तप, तीर्थ और पूजा के बिना केवल मन्त्रग्रहण मात्र से नर नारायण हो जाता है। श्रीकृष्ण-भक्त अपने नाना और उनके ऊपर की सौ पीढ़ियों का तथा पिता से लेकर ऊपर की एक सहस्र पीढ़ियों का उद्धार करके गोलोक में जाता है। नरेश्वर! यह सारभूत ज्ञान मैंने तुम्हें बताया है। सावर्णिक मन्वन्तर के अन्त में जब तुम्हारे सारे दोष समाप्त हो जायेंगे, उस समय मैं तुम्हें श्रीहरि की भक्ति प्रदान करूँगी। कर्मों का फल भोगे बिना उनका सैकड़ों करोड़ कल्पों में भी क्षय नहीं होता है। अपने किये हुए शुभ या अशुभ कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। मैं जिस पर अनुग्रह करती हूँ, उसे परमात्मा श्रीकृष्ण के प्रति निर्मल, निश्चल एवं सुदृढ़ भक्ति प्रदान करती हूँ और जिन्हें ठगना चाहती हूँ; उन्हें प्रातःकालिक स्वप्न के समान मिथ्या एवं भ्रमरूपिणी सम्पत्ति प्रदान करती हूँ। बेटा! मैंने तुम्हें यह ज्ञान की बात बतायी है। अब तुम सुखपूर्वक जाओ। ऐसा कहकर महादेवी वहीं अन्तर्धान हो गयीं। राज्य प्राप्ति का वरदान पाकर राजा देवी को नमस्कार करके अपने घर को चले गये। वत्स नारद! इस प्रकार मैंने तुम्हें दुर्गा जी का परम उत्तम उपाख्यान सुनाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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