ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 24-25
'आँख, कान, नाक, त्वचा और जिह्वा आदि यही इन्द्रियाँ हैं। सूर्य, वायु, पृथ्वी और वाणी आदि इन्द्रियों के देवता कहे गए हैं। जो प्राण एवं देहादि को धारण करता है, उसी की ‘जीव’ संज्ञा है। प्रकृति से परे जो सर्वव्यापी निर्गुण ब्रह्म हैं, उन्हीं को ‘परमात्मा’ कहते हैं। ये कारणों के भी कारण हैं। ये स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। वत्से! तुमने जो कुछ पूछा था, वह सब मैंने शास्त्रानुसार बतला दिया। यह विषय ज्ञानियों के लिए परम ज्ञानमय है। अब तुम सुखपूर्वक लौट जाओ।' सावित्री ने कहा- 'प्रभो! आप ज्ञान के अथाह समुद्र हैं। अब मैं इन अपने प्राणनाथ और आपको छोड़कर कैसे कहाँ जाऊँ? मैं जो-जो बातें पूछती हूँ, उसे आप मुझे बताने की कृपा करें। जीव किस कर्म के प्रभाव से किन-किन योनियों में जाता है? पिता जी! कौन कर्म स्वर्गप्रद है और कौन नरकप्रद? किस कर्म के प्रभाव से प्राणी मुक्त हो जाता है तथा श्रीहरि में भक्ति उत्पन्न करने के लिए कौन-सा कर्म कारण होता है? किस कर्म के फलस्वरूप प्राणी रोगी होता है और किस कर्मफल से निरोग? दीर्घजीवी और अल्पजीवी होने में कौन-कौन से कर्म प्रेरक हैं? किस कर्म के प्रभाव से प्राणी सुखी होता है और किस कर्म के प्रभाव से दुःखी? किस कर्म से मनुष्य अंगहीन, एकाक्ष, बधिर, अन्धा, पंगु, उन्मादी,पागल तथा अत्यन्त लोभी और नरघाती होता है एवं सिद्धि और सालोक्यादि मुक्ति प्राप्त होने में कौन कर्म सहायक है? किस कर्म के प्रभाव से प्राणी ब्राह्मण होता है और किस क्रम के प्रभाव से तपस्वी? स्वर्गादि भोग प्राप्त होने में कौन कर्म साधन है? किस कर्म से प्राणी वैकुण्ठ में जाता है? ब्रह्मन! गोलोक निरामय और सम्पूर्ण स्थानों से उत्तम धाम है। किस कर्म के प्रभाव से उसकी प्राप्ति हो सकती है? कितने प्रकार के नरक हैं और उनकी कितनी संख्या और उनके क्या-क्या नाम हैं? कौन किस नरक में जाता है और कितने समय तक वहाँ यातना भोगता है? किस कर्म के फल से पापियों के शरीर में कौन-सी व्याधि उत्पन्न होती है? भगवन! मैंने ये जो-जो प्रश्न किए हैं, इन सबके उत्तर देने की आप कृपा करें।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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