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- गोविन्द-सौन्दर्य देखि, पुनः कहे हैया सुखी,
- देखो सखि ! किरूप सन्धान।
- विधातार शिल्प सीमा, देखो एइ मनोरमा,
- तुल्य दिते नाहि जार स्थान।।
- दूर हैते गन्ध पाइया, कहे आनन्दित हैया,
- सौरभेर सीमा कृष्णअंग।
- केलि-परिपाटी देखि, कहे स्निग्ध हैया आँखि,
- अद्भुत केलि- सीमारंग।।
- जत व्रजदेवीगण, प्रेमरस अनुरक्षण,
- सौदन्यादि देखि पुनः कहे।
- व्रजस्त्री-सौभाग्य जाते, प्रेम परवीण ताते,
- तिलेक विच्छेद जाते नहे।
- क्षणेक विमर्शि कहे, गोपीभाग्य केवल नहे,
- व्रजवासी भाग्य सीमामय।
- आपन सौभाग्य कहि, दर्शन आनन्दमयी,
- पुनः एक श्लोक उच्चारय।।747।।
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