श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
सारंगरंगदा ‘आस्वादबिन्दु’ टीका राधारानी बोलीं- उन्हीं ‘देव’ अर्थात् क्रीड़ापरायण श्रीकृष्ण में मैं लीन हो गई हूँ कैसे कृष्ण? ‘कुसुमशर......लसदुरसि’ रतियुद्ध में कुसुमशर कन्दर्प के शराघात से कुपित या स्मरमद में यत्त गोपियों ने स्वेच्छा से श्रीकृष्ण को आलिंगन कर लिया; तब उन लोगों के कुचकलसों पर लिप्त कुंकुमरस से चित्रित होकर जिनके वक्ष ने अपूर्व शोभा धारण की है। उन्हीं श्रीकृष्ण के माधुर्य में मैं लीन हो रही हूँ। यहाँ अपन बात कहते हुए राधारानी ने सामान्य रूप से ‘गोपी’ शब्द का उल्लेख किया है। इसलिए उन्होंने ‘गोपी’ शब्द द्वारा अपनी बात ही कही है- यह उनकी वैदग्धी विशेष है। वस्तुतः राधारानी के वक्ष का कुंकुम श्रीकृष्ण के वक्ष पर लग गया है, तभी उनके ऐसे माधुर्य की अभिव्यक्ति है। राधारानी के वक्षका कुंकुम श्रीकृष्ण के चरणों से लग गया था, तब जिस अपूर्व माधुर्यशक्ति की अभिव्यक्ति घटित हुई थी, वह वेणुगीत में वर्णित है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चै.च.
संबंधित लेख
क्रमांक | श्लोक संख्या | श्लोक | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज