श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
द्वितीय अध्याय संबंध- पीछे के दो श्लोक मे पक्षान्तर की बात कहकर अब भगवान आगे के श्लोक में बिलकुल साधारण दृष्टि की बात कहते हैं। अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । व्याख्या- ‘अव्यक्तादीनि भूतानि’- देखने, सुनने और समझने में आने वाले जितने भी प्राणी[1] हैं, वे सब-के-सब जन्म से पहले अप्रकट थे अर्थात दीखते नहीं थे। ‘अव्यक्तनिधनान्येव’- ये सभी प्राणी मरने के बाद अप्रकट हो जाएंगे अर्थात इनका नाश होने पर ये सभी 'नहीं' में चले जायँगे, दीखेंगे नहीं। ‘व्यक्तमध्यानि’- ये सभी प्राणी बीच में अर्थात जन्म के बाद और मृत्यु के पहले प्रकट दिखायी देते हैं। जैसे सोने से पहले भी स्वप्न नहीं था और जगने पर भी स्वप्न नहीं रहा, ऐसे ही इन प्राणियों के शरीरों का पहले भी अभाव था और पीछे भी अभाव रहेगा। परंतु बीच में भावरूप से दीखते हुए भी वास्तव में इनका प्रतिक्षण अभाव हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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