श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- आश्चर्य और खेद में निमग्र हुए अर्जुन आगे के श्लोक में अपनी दलीलों का अंतिम निर्णय बताते हैं।
अर्थ- अगर ये हाथों में शस्त्र-अस्त्र लिए हुए धृतराष्ट्र के पक्षपाती लोग युद्धभूमि में सामना न करने वाले तथा शस्त्ररहित मेरे को मार भी दें, तो वह मेरे लिए बड़ा ही हितकारक होगा। व्याख्या- ‘यदि माम्.....क्षेमतरं भवेत्’- अर्जुन कहते हैं कि अगर मैं युद्ध से सर्वथा निवृत्त हो जाऊँगा, तो शायद ये दुर्योधन आदि भी युद्ध से निवृत्त हो जायँगे। कारण कि हम कुछ चाहेंगे ही नहीं, लड़ेंगे भी नहीं, तो फिर ये लोग युद्ध करेंगे ही क्यों? परंतु कदाचित जोश में भरे हुए तथा हाथों में शस्त्र धारण किये हुए ये धृतराष्ट्र के पक्षपाती लोग ‘सदा के लिए हमारे रास्ते का काँटा निकल जाए, वैरी समाप्त हो जाए’- ऐसा विचार करके सामना न करने वाले तथा शस्त्ररहित मेरे को मार भी दें, तो उनका वह मारना मेरे लिए हितकारक ही होगा। कारण कि मैंने युद्ध में गुरुजनों को मारकर बड़ा भारी पाप करने का जो निश्चय किया था, उस निश्चय रूप पाप का प्रायश्चित हो जाएगा, उस पाप से मैं शुद्ध हो जाऊँगा। तात्पर्य है कि मैं युद्ध नहीं करूँगा, तो मैं भी पाप से बचूँगा और मेरे कुल का भी नाश नहीं होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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