श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
अयुक्त: प्राकृत: स्तब्ध: शठो नैष्कृतिकोऽलस: ।
व्याख्या- ‘अयुक्तः’- तमोगुण मनुष्य को मूढ़ बना देता है।[1] इस कारण किस समय में कौन सा काम करना चाहिए? किस तरह करने से हमें लाभ है और किस तरह करने से हमें हानि है? इस विषय में तामस मनुष्य सावधान नहीं रहता अर्थात वह कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में सोचता ही नहीं। इसलिए वह ‘अयुक्त’ अर्थात असावधान कहलाता है। ‘प्राकृतः’- जिसने शास्त्र, सत्संग, अच्छी शिक्षा, उपदेश आदि से न तो अपने जीवन को ठीक बनाया है और न अपने जीवन पर कुछ विचार ही किया है, माँ-बाप से जैसा पैदा हुआ है, वैसा का वैसा ही कोरा अर्थात कर्तव्य-अकर्तव्य की शिक्षा से रहित रहा है, ऐसा मनुष्य ‘प्राकृत’ अर्थात अशिक्षित कहलाता है। ‘स्तब्धः’- तमोगुण की प्रधानता के कारण उसके मन, वाणी और शरीर में अकड़ रहती है। इसलिए वह अपने वर्ण-आश्रम में बड़े-बूढ़े माता, पिता, गुरु, आचार्य आदि के सामने कभी झुकता नहीं। वह मन, वाणी और शरीर से कभी सरलता और नम्रता का व्यवहार नहीं करता, प्रत्युत कठोर व्यवहार करता है। ऐसा मनुष्य ‘स्तब्ध’ अर्थात ऐंठ- अकड़ वाला कहलाता है। ‘शठः’- तामस मनुष्य अपनी एक जिद होने के कारण दूसरों की दी हुई अच्छी शिक्षा को, अच्छे विचारों को नहीं मानता। उसको तो मूढ़ता के कारण अपने ही विचार अच्छे लगते हैं। इसलिए वह ‘शठ’ अर्थात जिद्दी कहलाता है।[2] ‘अनैष्कृतिकः’- जिनसे कुछ उपकार पाया है, उनका प्रत्युपकार करने का जिसका स्वभाव होता है, वह ‘नैष्कृतिक’ कहलाता है। परंतु तामस मनुष्य दूसरों से उपकार पा करके भी उनका उपकार नहीं करता, प्रत्युत उनका अपकार करता है, इसलिए वह ‘अनैष्कृतिक’ कहलाता है। ‘अलसः’- अपने वर्ण आश्रम के अनुसार आवश्यक कर्तव्य-कर्म प्राप्त हो जाने पर भी तामस मनुष्य को मूढ़ता के कारण वह कर्म करना अच्छा नहीं लगता, प्रत्युत सांसारिक निरर्थक बातों को पड़े-पड़े सोचते रहना अथवा नींद में पड़े रहना अच्छा लगता है। इसलिए उसे आलसी कहा गया है। ‘विषादी’- यद्यपि तामस मनुष्य में यह विचार होता ही नहीं कि क्या कर्तव्य होता है और क्या अकर्तव्य होता है तथा निद्रा, आलस्य, प्रमाद आदि में मेरी शक्ति का, मेरे जीवन के अमूल्य समय का कितना दुरुपयोग हो रहा है, तथापि अच्छे मार्ग से और कर्तव्य से च्युत होने से उसके भीतर स्वाभाविक ही एक विषाद (दुःख, अशांति) होता रहता है। इसलिए उसे ‘विषादी’ कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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