श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
कर्म-संग्रह में ‘करण’ हेतु नहीं है; क्योंकि करण कर्ता के अधीन होता है। कर्ता जैसा कर्म करना चाहता है, वैसा ही कर्म होता है, इसलिए ‘कर्म’ भी कर्मसंग्रह में खास हेतु नहीं है। सांख्यसिद्धांत के अनुसार खास बाँधने वाला है- अहंकृतभाव और इसी से कर्मसंग्रह होता है। अहंकृतभाव न रहने से कर्मसंग्रह नहीं होता अर्थात कर्म फलजनक नहीं होता। इस मूल का ज्ञान कराने के लिए ही भगवान ने करण और कर्म को पहले रखकर कर्ता को कर्मसंग्रह के पास में रखा है, जिससे यह खयाल में आ जाए कि बाँधने वाला ‘कर्ता’ ही है। संबंध- गुणातीत होने के उद्देश्य से अब आगे के श्लोक से त्रिगुणात्मक पदार्थों का प्रकरण आरंभ करते हैं।
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