श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: । अर्थ- गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्त्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं, उनको भी तू मुझसे भली-भाँति सुन। व्याख्या- ‘प्रोच्यते गुणसंख्याने’- जिस शास्त्र में गुणों के संबंध से प्रत्येक पदार्थ के भिन्न-भिन्न भेदों की गणना की गयी है, उसी शास्त्र के अनुसार मैं तुम्हें ज्ञान, कर्म तथा कर्ता के भेद बता रहा हूँ। ‘ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः’- पीछे के श्लोक में भगवान ने कर्म की प्रेरणा होने में तीन हेतु बताए तथा तीन ही हेतु कर्म के बनने में बताये। इस प्रकार कर्मसंग्रह होने तक में कुल छः बातें बतायीं।[1] अब इस श्लोक में भगवान ज्ञान, कर्म तथा कर्ता- इन तीनों का विवेचन करने की बात कहते हैं। कर्म-प्रेरक-विभागों से विवेचन करने के लिए केवल ‘ज्ञान’ लिया गया है, क्योंकि किसी भी कर्म की प्रेरणा में पहले ज्ञान ही होता है। ज्ञान के बाद ही कार्य का आरंभ होता है। कर्मसंग्रह-विभाग से केवल ‘कर्म’ और ‘कर्ता’ लिए गए हैं। यद्यपि कर्म के होने में कर्ता मुख्य है, तथापि साथ में कर्म को भी लेने का कारण यह है कि कर्ता जब कर्म करता है, तभी कर्मसंग्रह होता है। अगर कर्ता कर्म न करे तो कर्मसंग्रह होगा ही नहीं। तात्पर्य यह हुआ कि कर्मप्रेरणा में ‘ज्ञान’ तथा कर्मसंग्रह में ‘कर्म’ और ‘कर्ता’ मुख्य है। इन तीनों (ज्ञान, कर्म और कर्ता) के सात्त्विक होने से ही मनुष्य निर्लिप्त हो सकता है, राजस और तामस होने से नहीं। अतः यहाँ कर्मप्रेरक विभाग में ‘ज्ञाता’ और ‘ज्ञेय’ को तथा कर्मसंग्रह विभाग में ‘करण’ को नहीं लिया गया है। कर्मप्रेरक-विभाग के ‘ज्ञाता’ और ‘ज्ञेय’ का विवेचन क्यों नहीं किया? कारण कि ज्ञाता जब क्रिया से संबंध जोड़ता है, तब वह ‘कर्ता’ कहलाता है और उस कर्ता के तीन (सात्त्विक, राजस और तामस) भेदों के अंतर्गत ही ज्ञाता के भी तीन भेद हो जाते हैं। परंतु ज्ञाता जब ज्ञप्तिमात्र रहता है, तब उसके तीन भेद नहीं होते; क्योंकि उसमें गुणों का संग नहीं है। गुणों का संग होने से ही उसके तीन भेद होते हैं। इसलिए वृत्ति-ज्ञान ही सात्त्विक, राजस तथा तामस होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कर्मप्रेरणा तो सूक्ष्म है और कर्मसंग्रह स्थूल है अर्थात ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञाता- ये तीनों सूक्ष्म सामग्री हैं तथा कर्म, करण और कर्ता- ये तीनों स्थूल सामग्री हैं।
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