श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षोडश अध्याय
आजतक जितने संत-महात्मा हुए हैं और अभी भी संत-महात्मा तथा अच्छी स्थिति वाले साधक हैं, उनके विषय में वे आसुर लोग कहते हैं कि उनमें भी राग-द्वेष,काम-क्रोध, स्वार्थ, दिखावटीपन आदि दोष पाए जाते हैं; किसी भी संत-महात्मा का चरित्र ऐसा नहीं है, जिसमें ये दोष न आए हों; अतः यह सब पाखंड है; हमने भी इन सब बातों को करके देखा है; हमने भी संयम किया है, भजन किया है, व्रत किये हैं, तीर्थ किए हैं, पर वास्तव में इनमें कोई दम नहीं है; हमें तो कुछ नहीं मिला, मुफ्त में ही दुःख पाया; उनके करने में वह समय हमारा व्यर्थ में ही बरबाद हुआ है; वे लोग भी किया के बहकावे में आकर अपना समय बरबाद कर रहे हैं; अभी ये ऐसे प्रवाह में बहे हुए हैं और उलटे रास्ते पर जा रहे हैं; अभी इनको होश नहीं है पर जब कभी चेतेंगे, तब उनको भी पता लगेगा; आदि-आदि। |
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