श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
इहैकस्थं जगतकृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् । अर्थ- हे नींद को जीतने वाले अर्जुन! मेरे इस शरीर के एक देश में चराचरसहित संपूर्ण जगत को अभी देख ले। इसके सिवाय तू और भी जो कुछ देखना चाहता है, वह भी देख ले। व्याख्या- ‘गुडाकेश’- निद्रा पर अधिकार प्राप्त करने से अर्जुन को ‘गुडाकेश’ कहते हैं। यहाँ यह संबोधन देने का तात्पर्य है कि तू निरालस्य होकर सावधानी से मेरे विश्वरूप को देख। ‘इहैकस्थं जगतकृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्, मम देहे’- दसवें अध्याय के अंत में भगवान ने कहा था कि मैं संपूर्ण जगत को एक अंश से व्याप्त करके स्थित हूँ। इसी पर अर्जुन के मन में विश्वरूप देखे की इच्छा हुई। अतः भगवान कहते हैं कि हाथ में घोड़ों की लगाम और चाबुक लेकर तेरे सामने बैठे हुए मेरे इस शरीर के एक देश (अंश) में चर-अचरसहित संपूर्ण जगत को देख। एक देश में देखने का अर्थ है कि तू जहाँ दृष्टि डालेगा, वहीं तेरे को अनन्त ब्रह्माण्ड दिखेंगे। तू मनुष्य, देवता, यक्ष, राक्षस, भूत, पशु, पक्षी आदि चलने-फिरने वाले जंगम और वृक्ष, लता, घास, पौधा आदि स्थावर तथा पृथ्वी, पहाड़, रेत आदि जड़सहित संपूर्ण जगत को ‘अद्य’- अभी, इसी क्षण देख ले, इसमें देरी का काम नहीं है। ‘यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि’- भगवान के शरीर में सब बातें वर्तमान थीं अर्थात जो बातें भूतकाल में बीत गयी हैं और जो भविष्य में बीतने वाली हैं, वे सब बातें भगवान के शरीर में वर्तमान थीं। इसलिए भगवान कहते हैं कि तू और भी जो कुछ देखना चाहता है, वह भी देख ले। अर्जुन और क्या देखना चाहते थे? अर्जुन के मन में संदेह था कि युद्ध में जीत हमारी होगी या कौरवों की?[1] इसलिए भगवान कहते हैं कि वह भी तू मेरे इस शरीर के एक अंश में देख ले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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