श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- जो देवताओं के भी स्वामी हों, उन्हें ‘देवेश’ कहते हैं तथा जो जगत् के आधार और सर्वव्यापी हों उन्हें ‘जगन्निवास’ कहते हैं। इन दोनों सम्बोधनों का प्रयोग करके अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि आप समस्त देवों के स्वामी साक्षात् सर्वाधार सर्वव्यापी परमेश्वर हैं, अतः आप ही उस अपने देवरूप को प्रकट कर सकते हैं। प्रश्न- ‘प्रसीद’ पद का क्या भाव है? उत्तर- ‘प्रसीद’ पद से अर्जुन भगवान् को प्रसन्न होने के लिये कहत हैं। अभिप्राय यह है कि आप शीघ्र ही इस विकराल रूप को समेटकर मुझे अपना चतुर्भुज स्वरूप दिखलाने की कृपा कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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