श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- पहले अध्याय के अन्त में जिनके शोकमग्न होकर बैठ जाने की बात कही गयी है, उन अर्जुन का वाचक यहाँ ‘तम’ पद है और उसके साथ उपर्युक्त विशेषणों का प्रयोग करके उनकी स्थिति का वर्णन किया गया है। अभिप्राय यह है कि पहले अध्याय में जिसका विस्तारपूर्वक वर्णन हो चुका है, उस बन्धु-स्नेहजनित करुणायुक्त कायरता के भाव से जो व्याप्त हैं, जिनके नेत्र आँसुओं से पूर्ण और व्याकुल हैं तथा जो बन्धु-बान्धवों के नाश की आशंका से एवं उन्हें मारने में भयानक पाप होने के भय से शोक में निमग्न हो रहे हैं, ऐसे अर्जुन से भगवान् बोले। प्रश्न- यहाँ ‘मधुसूदन’ नाम के प्रयोग का और ‘वाक्यम्’ के साथ ‘इदम्’ पद के प्रयोग का क्या भाव है? उत्तर- भगवान् के ‘मधुसूदन’ नाम का प्रयोग करके तथा ‘वाक्यम्’ के साथ ‘इदम्’ विशेषण देकर संजय ने धृतराष्ट्र को चेतावनी दी है। अभिप्राय यह है कि भगवान् श्रीकृष्ण ने पहले देवताओं पर अत्याचार करने वाले ‘मधु’ नामक दैत्य को मारा था, इस कारण इनका नाम ‘मधुसूदन’ पड़ा; वे ही भगवान् युद्ध से मुँह मोड़े हुए अर्जुन को ऐसे (आगे कहे जाने वाले) वचनों द्वारा युद्ध के लिये उत्साहित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में आपके पुत्रों की जीत कैसे होगी, क्योंकि आपके पुत्र भी अत्याचारी हैं और अत्याचारियों का विनाश करना भगवान् का काम है; अतएव अपने पुत्रों को समझाकर अब भी आप[1] सन्धि कर लें, तो इनका संहार रुक जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्मरण रहे कि ये बातें संजय ने धृतराष्ट्र से दस दिन तक युद्ध हो जाने के पश्चात् कही थीं; अतः ‘अब भी सन्धि कर लें’ इसका यह अभिप्राय समझना चाहिये कि शेष बचे हुए कुटुम्ब की रक्षा के लिये अब दस दिन के बाद भी आपको सन्धि कर लेनी चाहिये, इसी में बुद्धिमत्ता है।
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