श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टम अध्याय
अध्याय का संक्षेप- इस अध्याय के पहले और दूसरे श्लोकों में ब्रह्म, अध्यात्म आदि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न हैं फिर तीसरे से पाँचवे तक भगवान् सातों प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर देकर छठे में अन्तकाल के चिन्तन का महत्त्व दिखलाते हुए सातवें में अर्जुन को निरन्तर अपना चिन्तन करने की आज्ञा देते हैं। आठवें से दसवें तक योग की विधि से भक्तिपूर्वक भगवान् के सगुण-निराकार स्वरूप का चिन्तन करते हुए प्राणत्याग करने का प्रकार और उसके फल का वर्णन किया है। ग्यारहवें से तेरहवें तक परमात्मा के निर्गुण स्वरूप की प्रशंसा करते हुए अन्तकाल में योगधारण की विधि से निर्गुण ब्रह्म के जप-ध्यान का प्रकार और उसके फल का वर्णन करके चौदहवें में भगवान् ने अपनी प्राप्ति का सुगम उपाय अनन्य प्रेमपूर्वक निरन्तर चिन्तन करना बतलाया है। पंद्रहवें और सोलहवें में भगवत्प्राप्ति से पुनर्जन्म का अभाव और अन्य समस्त लोकों को पुनरावृत्तिशील बतलाकर सत्रहवें से उन्नीसवें तक ब्रह्मा के रात-दिन का परिमाण बतलाते हुए समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय का वर्णन किया है। बीसवें में एक अव्यक्त से परे दूसरे सनातन अव्यक्त का प्रतिपादन करके, इक्कीसवें और बाईसवें में उसी का ‘अक्षर’, ‘परमगति’, ‘परमधाम’ एवं ‘परमपुरुष’-इन नामों से प्रतिपादन करते हुए अनन्य भक्ति को उस परम पुरुष की प्राप्ति का उपाय बतलाया गया है। तदनन्तर तेईसवें से छब्बीसवें तक शुक्ल और कृष्ण गति का फलसहित वर्णन करके सत्ताईसवें में उन दोनों गतियों को जानने वाले योगी की प्रशंसा करते हुए अर्जुन को योगी बनने के लिये आज्ञा दी गयी है और अट्ठाईसवें श्लोक में अध्याय में वर्णित तत्त्व को जानने का फल बतलाकर अध्याय का उपसंहार किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज