श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टम अध्याय
पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।
उत्तर- प्रथम वाक्य से यह समझना चाहिये कि जैसे वायु, तेज, जल और पृथ्वी, चारों भूत आकाश के अन्तर्गत हैं, आकाश ही उनका एकमात्र कारण और आधार है, उसी प्रकार समस्त चराचर प्राणी अर्थात् सारा जगत् परमेश्वर के ही अन्तर्गत है, परमेश्वर से ही उत्पन्न है और परमेश्वर के ही आधार पर स्थित है। दूसरे वाक्य से यह बात समझनी चाहिये कि जिस प्रकार वायु, तेज, जल, पृथ्वी- इन सबमें आकाश व्याप्त है, उसी प्रकार यह सारा जगत् अव्यक्त परमेश्वर से व्याप्त है, यही बात नवम अध्याय के चौथे, पाँचवें और छठे श्लोकों में विस्तारपूर्वक दिखलायी गयी है। प्रश्न- ‘परः पुरुषः’ किसका वाचक है? उत्तर- यहाँ ‘परः पुरुषः’ सर्वव्यापी ‘अधियज्ञ’ का वाचक है। इसी अध्याय के आठवें, नवें और दसवें श्लोकों में जिस सगुण-निराकार की उपासना का प्रकरण है तथा बीसवें श्लोक में जिस अव्यक्त पुरुष की बात कही गयी है, यह प्रकरण भी उसी की उपासना का है। उसी परमेश्वर में समस्त भूतों की स्थिति और उसी की सबमें व्याप्ति बतलायी गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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