श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।
उत्तर- महाभारत-युद्ध में भगवान् ने शस्त्र-ग्रहण न करने की प्रतिज्ञाा की थी और अर्जुन के रथ पर वे अपने हाथों में चाबुक और घोड़ों की लगाम थामे विराजमान थे। परंतु इस समय अर्जुन भगवान् के इस द्विभुज रूप को देखने से पहले उस चतुर्भुज रूप को देखना चाहते हैं, जिसके हाथों में गदा और चक्रादि हैं; इसी अभिप्राय से ‘तथा’ के साथ ‘एव’ पद का प्रयोग हुआ है। प्रश्न- ‘तेन एव’ पदों से क्या अभिप्राय है? उत्तर- पूर्वश्लोक में आये हुए ‘तत् देवरूपम् एव’ को लक्ष्य करके ही अर्जुन कहते हैं कि आप वही चतुर्भुज रूप हो जाइये। यहाँ ‘एव’ पद से यह भी ध्वनित होता है कि अर्जुन प्रायः सदा भगवान् के द्विभुजरूप का ही दर्शन करते थे, परंतु यहाँ ‘चतुर्भुजरूप’ को ही देखना चाहते हैं। प्रश्न- चतुर्भुजरूप श्रीकृष्ण के लिये कहा गया है या देवरूप कहने से श्रीविष्णु के लिये? उत्तर- श्रीविष्णु के लिये कहा गया है, इसमें निम्नलिखित कई हेतु हैं-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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