श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- यहाँ संजय कर रहे हैं कि विषादमग्न अर्जुन ने भगवान् से इतनी बातें कहकर बाणसहित गाण्डीव धनुष को उतारकर नीचे रख दिया और रथ के पिछले भाग में चुपचाप बैठकर वे नाना प्रकार की चिन्ताओं में डूब गये। उनके मन में कुलनाश और उससे होने वाले भयानक पाप और पापफलों के भीषण चित्र आने लगे। उनके मुखमण्डल पर विषाद छा गया और नेत्र शोकाकुल हो गये। ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्याय: ।। 1 ।। प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर जो उपर्युक्त पुष्पिका दी गयी है, इसमें श्रीमद्भगवद्गीता का माहात्म्य और प्रभाव ही प्रकट किया गया है। ‘ऊँ तत्सत्’ भवगान् के पवित्र नाम हैं[1], स्वयं श्रीभगवान् के द्वारा गायी जाने के कारण इसका नाम ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ है, इसमें उपनिषदों का सारतत्त्व संग्रहीत है और यह स्वयं भी उपनिषद् है, इससे इसको ‘उपनिषद्’ कहा गया है, निर्गुण-निराकार परमात्मा के परमतत्त्व का साक्षात्कार कराने वाली होने के कारण इसका नाम ‘ब्रह्मविद्या’ है और जिस कर्मयोग का योग के नाम से वर्णन हुआ है, उस निष्कामभावपूर्ण कर्मयोग का तत्त्व बतलाने वाली होने से इसका नाम ‘योगशास्त्र’ है। यह साक्षात परम पुरुष भगवान् श्रीकृष्ण और भक्तवर अर्जुन का संवाद है और इसके प्रत्येक अध्याय में परमात्मा को प्राप्त कराने वाले योग का वर्णन है, इसी से इसके लिये ‘श्रीकृष्णार्जुनसंवादे........योगो नाम’ कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 17।23
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