श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
त्रयोदश अध्याय
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासत: ।
उत्तर- पाँचवें और छठे श्लोकों में विकारोंसहित क्षेत्र के स्वरूप का वर्णन किया गया है। सातवें से ग्यारहवें श्लोक तक ज्ञान के नाम से ज्ञान के बीस साधनों का और बारहवें से सत्रहवें तक ज्ञेय अर्थात् जानने योग्य परमात्मा के स्वरूप का वर्णन किया गया है। प्रश्न- ‘मद्भक्तः’ पद के प्रयोग का क्या अभिप्राय है तथा उस क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय को जानना क्या है एवं भगवद्भाव को प्राप्त होना क्या है? उत्तर- ‘मद्भक्तः’ पद यहाँ भगवान् का भजन, ध्यान, आज्ञापालन और पूजन तथा सेवा आदि भक्ति करने वाले भगवद्भक्त का वाचक है। इसका प्रयोग करके भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि इस ज्ञान मार्ग में भी मेरी शरण ग्रहण करके चलने वाला साधक सहज ही में परम पद को प्राप्त कर सकता है। यहाँ क्षेत्र को प्रकृति का कार्य, जड़, विकारी अनित्य और नाशवान् समझना, ज्ञान के साधनों को भलीभाँति धारण करना और उनके द्वारा भगवान् के निर्गुण, सगुण रूप को भलीभाँति समझ लेना- यह क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय को जानना है। तथा उस ज्ञेय स्वरूप परमात्मा को प्राप्त हो जाना ही भगवद्भाव को प्राप्त हो जाना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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