अष्टम अध्याय
सम्बन्ध- सातवें अध्याय में पहले से तीसरे श्लोक तक भगवान् ने अपने समग्ररूप का तत्त्व सुनने के लिये अर्जुन को सावधान करते हुए, उसके कहने की प्रतिज्ञा और जानने वालों की प्रशंसा की। फिर सत्ताईसवें श्लोक तक अनेक प्रकार से उस तत्त्व को समझाकर न जानने के कारण को भी भलीभाँति समझाया और अन्त में ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ के सहित भगवान् के समग्ररूप को जानने वाले भक्त की महिमा का वर्णन करते हुए उस अध्याय का उपसंहार किया। उनतीसवें और तीसवें श्लोकों में वर्णित ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ- इन छहों का तथा प्रयाणकाल में भगवान को जानने की बात का रहस्य भलीभाँति न समझने के कारण इस आठवें अध्याय के आरम्भ में पहले दो श्लोंकों मे अर्जुन उपर्युक्त सातों विषयों को समझने के लिये भगवान् से सात प्रश्न करते हैं-
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम् ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।। 1 ।।
अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं।।1।।
प्रश्न- ‘वह ब्रह्म क्या है?’ अर्जुन के इस प्रश्न का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- ‘ब्रह्म’ शब्द वेद, ब्रह्मा, निर्गुण परमात्मा, प्रकृति और ओंकार आदि अनेक तत्त्वों के लिये व्यवहृत होता है; अतः उनमें से यहाँ ‘ब्रह्म’ शब्द किस तत्त्व के लक्ष्य से कहा गया है, यह जानने के लिये अर्जुन का प्रश्न है।
प्रश्न- ‘अध्यात्म क्या है?’ इस प्रश्न का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, जीव और परमात्मा आदि अनेक तत्त्वों को ‘अध्यात्म’ कहते हैं। उनमें से यहाँ ‘अध्यात्म’ नाम से भगवान् किस तत्त्व की बात कहते हैं? यह जानने के लिये अर्जुन का यह प्रश्न है।
|