श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- कश्यप जी की पत्नी मुनि और प्राधा से तथा अरिष्टा से गन्धर्वों की उत्पत्ति मानी गयी है, ये राग-रागिनियों के ज्ञान में निपुण हैं और देवलोक की वाद्य-नृत्यकला में कुशल समझे जाते हैं। यक्षों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप की खसा नामक पत्नी से मानी गयी है। भगवान् शंकर के गणों में भी यक्षलोग हैं। इन यक्षों के और उत्तम राक्षसों के राजा कुबेर माने जाते हैं। देवताओं के विरोधी दैत्य, दानव और राक्षसों को असुर कहते हैं। कश्यप जी की स्त्री ‘दिति से’ उत्पन्न होने वाले ‘दैत्य’ और ‘दनु’ से उत्पन्न होने वाले ‘दानव’ कहलाते हैं। राक्षसों की उत्पत्ति विभिन्न प्रकार से हुई है। कपिल आदि सिद्धजनों को ‘सिद्धि’ कहते हैं। इनके सबके विभिन्न अनेकों समदायों का वाचक यहाँ ‘गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा:’ पद हैं। प्रश्न- वे सब विस्मित होकर आपको देख रहे हैं, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इस कथन से अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि उपर्युक्त सभी देवता, पितर, गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धों के भिन्न-भिन्न समुदाय आश्चर्यचकित होकर आपके इस अद्भुत रूप की ओर देख रहे हैं- ऐसा मुझे दिखलायी देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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