श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरूतश्चीष्मपाश्च ।
उत्तर- ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु और उनचास मरुत् इन चार प्रकार के देवताओं के समूहों का वर्णन तो दसवें अध्याय के इक्कीसवें और तेईसवें श्लोकों की व्याख्या और उसकी टिप्पणी में तथा अश्विनी कुमारों का ग्यारहवें अध्याय के छठे श्लोक की टिप्पणी में किया जा चुका है- वहाँ देखना चाहिये। मन, अनुमन्ता, प्राण, नर, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव और विभु- ये बारह साध्यदेवता हैं।[1] और क्रतु, दक्ष, श्रव, सत्य, काल, काम, धुनि, कुरुवान्, प्रभवान् और रोचमान-ये दस विश्वेदेव हैं।[2] आदित्य और रुद्र आदि देवताओं के आठ गण (समुदाय) हैं, उन्हीं में से साध्य और विश्वेदेव भी दो विभिन्न गण हैं।[3] प्रश्न- ‘ऊष्मपाः’ पद किनका वाचक है? उत्तर- जो ऊष्म (गरम) अन्न खाते हों, उनको ऊष्मपाः’ कहते हैं। मनुस्मृति के तीसरे अध्याय के दौ सौ सैंतीसवें श्लोक में कहा है कि पितर लोग गरम अन्न ही खाते हैं, अतएव यहाँ ‘ऊष्मपाः पद पितरो के समुदाय का[4] वाचक समझना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑
मनोऽनुमन्ता प्राणश्च नरो यानश्च वीर्यवान्।
चित्तिर्हयो नयश्चैव हंसो नारायणस्तथा।।
प्रभवोऽथ विभुश्चैव साध्या द्वाद्वश जज्ञिरे। (वायुपुराण 66। 15-16)धर्म की पत्नी दक्षकन्या साध्या से इन बारह साध्य देवताओं की उत्पत्ति हुई थी। स्कन्दपुराण में इनके इस प्रकार नामान्तर मिलते हैं- मन, अनुमन्ता, प्राण, नर, अपान, भक्ति, भय, अनघ, हंस, नारायण, विभु और प्रभु। (स्कन्दपुराण, प्रभास-खण्ड 21। 17; 18) मन्वन्तर-भेद से सब ठीक है।
- ↑
विश्वेदेवास्तु विश्वाया जज्ञिरे दश विश्रुताः।
क्रतुर्दभः श्रवः सत्यः कालः कामो धुनिस्तथा।
कुरुवान् प्रभवांश्चैव रोजमानश्च ते दश।।(वायुपुराण 66। 31-32)धर्म की पत्नी दक्षकन्या विश्वा से इन दस विश्वेदेवों की उत्पत्ति हुई थी। कुछ पुराणों में मन्वन्तर भेद से इनके भी नामान्तर मिलते हैं।
- ↑ ब्रह्माण्डपुराण 71। 2
- ↑ पितरों के नाम दसवें अध्याय के उनतीसवें श्लोक तक की व्याख्या में बतलाये जा चुके हैं।
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