श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।
उत्तर- दिति के वंशजों को दैत्य कहते हैं। उन सबमें प्रह्लाद उत्तम माने गये हैं; क्योंकि वे सर्वसद्गुण सम्पन्न, परम धर्मात्मा और भगवान् के परम श्रद्धालु, निष्काम, अनन्यप्रेमी भक्त हैं तथा दैत्यों के राजा हैं। इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- यहाँ ‘काल’ शब्द किसका वाचक है? और उसे अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- यहाँ ‘काल’ शब्द क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि नामों से कहे जाने वाले समय का वाचक है। यह गणितविद्या के जानने वालें का गणना का आधार है। इसलिये काल को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- सिंह तो हिंसक पशु है, इसकी गणना भगवान् ने अपनी विभूतियों में कैसे की? उत्तर- सिंह जब पशुओं का राजा माना गया है। वह सबसे बलवान्‚ तेजस्वी, शूरवीर और साहसी होता है। इसलिये भगवान् ने सिंह को अपनी विभूतियों में गिना है। प्रश्न- पक्षियों में गरुड़ को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- विनता के पुत्र गरुड़ जी पक्षियों के राजा और उन सबसे बड़े होने के कारण पक्षियों में श्रेष्ठ माने गये हैं। साथ ही ये भगवान् के वाहन, उनके परम भक्त और अत्यन्त पराक्रमी हैं। इसलिये गरुड को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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